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  #1801 (ПС)
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Почему изменили теги темы?
Похуй на тэги маан

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  #1802 (ПС)
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Почему изменили теги темы?
Похуй на тэги маан
базаришь ман

 
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(20.7 Кбайт / 19 просм.)
 
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  #1803 (ПС)
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Почему изменили теги темы?
Похуй на тэги маан
базаришь ман
еее маан

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пизда рулю
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  #1804 (ПС)
вы че суки игнорируете меня

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⧸_⎠
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  #1805 (ПС)
я думаю что..
Показать скрытый текст
теги ебануты

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Отсутствую
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Откуда: взялась ссылка на A-ONE в правом верхнем углу?
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  #1806 (ПС)
-Цитата от C@sper Посмотреть сообщение
вы че суки игнорируете меня
Потому что ты 中国避孕套 (Китайский Гандон)

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пизда рулю
Аватар для Белые Кроссовки
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  #1807 (ПС)
-Цитата от Автор Рассказов Посмотреть сообщение
-Цитата от C@sper Посмотреть сообщение
вы че суки игнорируете меня
Потому что ты 中国避孕套 (Китайский Гандон)
ухахахахахахах ты мне начинаешь нравиться, как твоя фамилия игрок?

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  #1808 (ПС)
-Цитата от Автор Рассказов Посмотреть сообщение
-Цитата от C@sper Посмотреть сообщение
вы че суки игнорируете меня
Потому что ты 中国避孕套 (Китайский Гандон)

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  #1809 (ПС)
इतिहास

आजकल विश्व के लगभग सारे देशों में डबलरोटी (ब्रेड) का उपयोग हो रहा है। लेकिन आधुनिक लोगों की पसंदीदा डबलरोटी आज से नहीं सदियों पहले से अस्तित्व में है। कहते हैं कि ईसा से 3000 वर्ष पूर्व मिस्र में डबल रोटी की शुरूआत हुई थी। वहां के लोग गुंधे हुए आटे में खमीर मिली टिकिया को भट्टी में पकाकर डबलरोटी बनाते थे। इस प्रकार डबलरोटी बनाने के नमूने मिस्र के मकबरों में मिलते हैं। अलग-अलग देशों में अलग-अलग पदार्थों से डबलरोटी तैयार की जाती है। कहीं नमक मिले आटे या मैदा से, तो कहीं आलू, मटर, चावल या जौ का आटा मिलाकर इसे बहुत स्वादिष्ट बनाने का प्रयास किया जाता है। डबलरोटी के आटे में मिला खमीर पकाए जाने पर गैस बनाता है, जो बुलबुले के रूप में फटकर बाहर निकलती है। इसी कारण डबलरोटी में सुराख होते हैं। आदि मानव गेहूं के दानों को भिगोकर, पत्थर पर पीस लेता था। फिर उस लुगदी को अंगारों या गरम पत्थर पर सेंक लिया करता था।
[संपादित करें]
बनाने की विधि

सभ्यता के विकास के साथ-साथ रोटी ने भी अपना रूप बदला और लुगदी की रोटी की जगह, आज खमीर युक्त डबल रोटी ने ले ली है। डबलरोटी बनाने के लिए गेहूं का आटा बनाने की प्रक्रिया भी बडी मनोरंजक है। बड़ी-बड़ी कोठियों में गेहूं जमा किया जाता है और शक्तिशाली पम्पों से एक मिनट में लगभग ढाई टन गेहूं ऊपर खींच लिया जाता है। यह जमा किया हुआ गेहूं भी ज्यों का त्यों काम में नहीं लिया जाता बल्कि बड़ी आटा मिल में एक टॉवरनुमा ढांचे में लगी अनेक मोटी और महीन छलनियों से गुजरता है। इस प्रक्रिया से गेहूं के कंकड़ और तिनके आदि साफ हो जाते हैं। अब गेहूं धुलाई कक्ष से गुजरता हुआ गरम हवा में सूखने के लिए कुछ देर रुकता है। सूखने पर निर्धारित माप के बेलनों से इसको मोटा-मोटा दला जाता है। इसके बाद बारीक बेलनों से इसकी पिसाई होती है।

उस महीन आटे को भी पांच-छ मोटी, बारीक छलनियों से गुजरना पडता है। इन छलनियों में ताकतवर चुम्बक लगे रहते हैं, ताकि आटे में पडी लोहे की अशुध्दियों को खींच सकें। अब यह शोधित आटा मैदा बनकर बाजार में आ जाता है। बस, इसी मैदे से बनती हैं - डबल रोटियां। सर्वप्रथम एक बडे बर्तन में यंत्र द्वारा मैदा डाला जाता है। उसमें साफ पानी और निर्धारित मात्रा में चीनी एवं खमीर युक्त घोल मिलाकर गूंधा जाता है।

गुंधाई के बाद आटे को धातु की सतह वाली लंबी मेज पर रखकर एक महीन कपड़े से ढंक दिया जाता है। इस बीच खमीर के कारण आटे में खट्टापन आ जाता है और उसका जायका भी कुछ अलग हो जाता है। साथ में कार्बन डाई ऑक्साइड गैस बनती है, जो समूचे आटे को फुलाकर स्पंज की तरह हल्का कर देती है। जब भट्ठी में डबल रोटी सिंकती है तो ताप के कारण गैस रोटी को छलनी करती हुई उड़ जाती है। यह विशेषता सिर्फ गेहूं के आटे में ही होती है। अब यह गुंधा हुआ मैदा यंत्रों से कांटे पर तुलता है और निर्धारित माप की लोइयों में बंट जाता है। ये लोइयां मशीन द्वारा डबलरोटी के आकार की बनाई जाती हैं। नीचे धातु का एक पात्र रहता है, जिसमें से डबल रोटी गिरती जाती है। इन पात्रों को 450 डिग्री फारेनहाइट से 500 डिग्री फारेनाइट तक के तापमान वाली भट्ठी में रख दिया जाता है। लगभग 40-50 मिनट बाद डबलरोटी तैयार हो जाती है। इस तैयार डबलरोटी को काटने के लिए बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। अगर ज्यादा गरम अवस्था में इसे पैक कर दिया जाए तो ठंडी पडने पर इसके सील जाने की आशंका रहती है और फफूंद उठ सकती है। इसलिए इसे प्राय: 90 डिग्री फारेनहाइट से 95 डिग्री फारेनहाइट के तापमान पर ही पैक किया जाता है।
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बाहरी कडि़यां

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пизда рулю
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  #1810 (ПС)
потом лизнете у друг друга ,,давайте попиздим

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На шабе
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  #1811 (ПС)
Кстати, тэги я не менял.

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  #1812 (ПС)
ധാന്യങ്ങള്‍ പൊടിച്ചുണ്ടാക്കിയ മാവും(പ്രധാനമായും ഗോതമ്പ്) വെള്ളവും ചേര്‍ത്തുണ്ടാക്കുന്ന ഒരു ആഹാര പദാര്‍ത്ഥമാണ് റൊട്ടി. ഇവ പുളിപ്പിച്ചതോ പുളിപ്പിക്കാത്തവയോ ആവാം. ഉപ്പ്, കൊഴുപ്പ്, പുളിപ്പിക്കലിനുപയോഗിക്കുന്ന യീസ്റ്റ് പോലെയുള്ള വസ്തുക്കള്‍ എന്നിവയാണ് റൊട്ടിയിലെ സാധാരണ ഘടകങ്ങള്‍. എന്നാല്‍ മറ്റ് പല ഘടകങ്ങളും റൊട്ടികളില്‍ കാണാറുണ്ട്. പാല്‍, മുട്ട, പഞ്ചസാര, സുഗന്ധവ്യഞ്ജനങ്ങള്‍, പഴങ്ങള്‍ (ഉണക്കമുന്തിരി തുടങ്ങിയവ), പച്ചക്കറികള്‍ (ഉള്ളി തുടങ്ങിയവ), പരിപ്പുകള്‍ (വാല്‍നട്ട് തുടങ്ങിയവ), വിത്തുകള്‍ (പോപ്പി വിത്ത് തുടങ്ങിയവ).

മനുഷ്യന്‍ ഏറ്റവും ആദ്യമായി പാചകം ചെയ്ത ആഹാരങ്ങളിലൊന്നാണ് റൊട്ടി. നിയോലിതിക്ക് കാലഘട്ടത്തിലാണ് റൊട്ടിയുടെ ഉദ്ഭവം. പുളിപ്പിച്ച റൊട്ടിയുടെയും ഉദ്ഭവം ചരിത്രാധീത കാലത്തുതന്നെയാണ

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Six City
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  #1813 (ПС)
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इतिहास

आजकल विश्व के लगभग सारे देशों में डबलरोटी (ब्रेड) का उपयोग हो रहा है। लेकिन आधुनिक लोगों की पसंदीदा डबलरोटी आज से नहीं सदियों पहले से अस्तित्व में है। कहते हैं कि ईसा से 3000 वर्ष पूर्व मिस्र में डबल रोटी की शुरूआत हुई थी। वहां के लोग गुंधे हुए आटे में खमीर मिली टिकिया को भट्टी में पकाकर डबलरोटी बनाते थे। इस प्रकार डबलरोटी बनाने के नमूने मिस्र के मकबरों में मिलते हैं। अलग-अलग देशों में अलग-अलग पदार्थों से डबलरोटी तैयार की जाती है। कहीं नमक मिले आटे या मैदा से, तो कहीं आलू, मटर, चावल या जौ का आटा मिलाकर इसे बहुत स्वादिष्ट बनाने का प्रयास किया जाता है। डबलरोटी के आटे में मिला खमीर पकाए जाने पर गैस बनाता है, जो बुलबुले के रूप में फटकर बाहर निकलती है। इसी कारण डबलरोटी में सुराख होते हैं। आदि मानव गेहूं के दानों को भिगोकर, पत्थर पर पीस लेता था। फिर उस लुगदी को अंगारों या गरम पत्थर पर सेंक लिया करता था।
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बनाने की विधि

सभ्यता के विकास के साथ-साथ रोटी ने भी अपना रूप बदला और लुगदी की रोटी की जगह, आज खमीर युक्त डबल रोटी ने ले ली है। डबलरोटी बनाने के लिए गेहूं का आटा बनाने की प्रक्रिया भी बडी मनोरंजक है। बड़ी-बड़ी कोठियों में गेहूं जमा किया जाता है और शक्तिशाली पम्पों से एक मिनट में लगभग ढाई टन गेहूं ऊपर खींच लिया जाता है। यह जमा किया हुआ गेहूं भी ज्यों का त्यों काम में नहीं लिया जाता बल्कि बड़ी आटा मिल में एक टॉवरनुमा ढांचे में लगी अनेक मोटी और महीन छलनियों से गुजरता है। इस प्रक्रिया से गेहूं के कंकड़ और तिनके आदि साफ हो जाते हैं। अब गेहूं धुलाई कक्ष से गुजरता हुआ गरम हवा में सूखने के लिए कुछ देर रुकता है। सूखने पर निर्धारित माप के बेलनों से इसको मोटा-मोटा दला जाता है। इसके बाद बारीक बेलनों से इसकी पिसाई होती है।

उस महीन आटे को भी पांच-छ मोटी, बारीक छलनियों से गुजरना पडता है। इन छलनियों में ताकतवर चुम्बक लगे रहते हैं, ताकि आटे में पडी लोहे की अशुध्दियों को खींच सकें। अब यह शोधित आटा मैदा बनकर बाजार में आ जाता है। बस, इसी मैदे से बनती हैं - डबल रोटियां। सर्वप्रथम एक बडे बर्तन में यंत्र द्वारा मैदा डाला जाता है। उसमें साफ पानी और निर्धारित मात्रा में चीनी एवं खमीर युक्त घोल मिलाकर गूंधा जाता है।

गुंधाई के बाद आटे को धातु की सतह वाली लंबी मेज पर रखकर एक महीन कपड़े से ढंक दिया जाता है। इस बीच खमीर के कारण आटे में खट्टापन आ जाता है और उसका जायका भी कुछ अलग हो जाता है। साथ में कार्बन डाई ऑक्साइड गैस बनती है, जो समूचे आटे को फुलाकर स्पंज की तरह हल्का कर देती है। जब भट्ठी में डबल रोटी सिंकती है तो ताप के कारण गैस रोटी को छलनी करती हुई उड़ जाती है। यह विशेषता सिर्फ गेहूं के आटे में ही होती है। अब यह गुंधा हुआ मैदा यंत्रों से कांटे पर तुलता है और निर्धारित माप की लोइयों में बंट जाता है। ये लोइयां मशीन द्वारा डबलरोटी के आकार की बनाई जाती हैं। नीचे धातु का एक पात्र रहता है, जिसमें से डबल रोटी गिरती जाती है। इन पात्रों को 450 डिग्री फारेनहाइट से 500 डिग्री फारेनाइट तक के तापमान वाली भट्ठी में रख दिया जाता है। लगभग 40-50 मिनट बाद डबलरोटी तैयार हो जाती है। इस तैयार डबलरोटी को काटने के लिए बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। अगर ज्यादा गरम अवस्था में इसे पैक कर दिया जाए तो ठंडी पडने पर इसके सील जाने की आशंका रहती है और फफूंद उठ सकती है। इसलिए इसे प्राय: 90 डिग्री फारेनहाइट से 95 डिग्री फारेनहाइट के तापमान पर ही पैक किया जाता है।
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के कारण आटे में खट्टापन आ जाता है और उसका जायका भी कुछ अलग हो जाता है। साथ में कार्बन डाई ऑक्साइड गैस बनती है, जो समूचे आटे को फुलाकर स्पंज की तरह हल्का कर देती है। जब भट्ठी में डबल रोटी सिंकती है तो ताप के कारण गैस रोटी को छलनी करती हुई उड़ जाती है। यह विशेषता सिर्फ गेहूं के आटे में ही होती है। अब यह गुंधा हुआ मैदा यंत्रों से कांटे पर तुलता है और निर्धारित माप की लोइयों में बंट जाता है। ये लोइयां मशीन द्वारा डबलरोटी के आकार की बनाई जाती हैं। नीचे धातु का एक पात्र रहता है, जिसमें से डबल रोटी गिरती जाती है। इन पात्रों को 450 डिग्री फारेनहाइट से 500 डिग्री फारेनाइट तक के तापमान वाली भट्ठी में रख दिया जाता है। लगभग 40-50 मिनट बाद डबलरोटी तैयार हो जाती है। इस तैयार डबलरोटी को काटने के लिए बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। अगर ज्यादा गरम अवस्था में इसे पैक कर दिया जाए तो ठंडी पडने पर इसके सील जाने की आशंका रहती है और फफूंद उठ सकती है। इसलिए इसे प्राय: 90 डिग्री फारेनहाइट से 95 डिग्री फारेनहाइट के तापमान पर ही पैक किया जाता है।
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  #1814 (ПС)
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इतिहास

आजकल विश्व के लगभग सारे देशों में डबलरोटी (ब्रेड) का उपयोग हो रहा है। लेकिन आधुनिक लोगों की पसंदीदा डबलरोटी आज से नहीं सदियों पहले से अस्तित्व में है। कहते हैं कि ईसा से 3000 वर्ष पूर्व मिस्र में डबल रोटी की शुरूआत हुई थी। वहां के लोग गुंधे हुए आटे में खमीर मिली टिकिया को भट्टी में पकाकर डबलरोटी बनाते थे। इस प्रकार डबलरोटी बनाने के नमूने मिस्र के मकबरों में मिलते हैं। अलग-अलग देशों में अलग-अलग पदार्थों से डबलरोटी तैयार की जाती है। कहीं नमक मिले आटे या मैदा से, तो कहीं आलू, मटर, चावल या जौ का आटा मिलाकर इसे बहुत स्वादिष्ट बनाने का प्रयास किया जाता है। डबलरोटी के आटे में मिला खमीर पकाए जाने पर गैस बनाता है, जो बुलबुले के रूप में फटकर बाहर निकलती है। इसी कारण डबलरोटी में सुराख होते हैं। आदि मानव गेहूं के दानों को भिगोकर, पत्थर पर पीस लेता था। फिर उस लुगदी को अंगारों या गरम पत्थर पर सेंक लिया करता था।
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बनाने की विधि

सभ्यता के विकास के साथ-साथ रोटी ने भी अपना रूप बदला और लुगदी की रोटी की जगह, आज खमीर युक्त डबल रोटी ने ले ली है। डबलरोटी बनाने के लिए गेहूं का आटा बनाने की प्रक्रिया भी बडी मनोरंजक है। बड़ी-बड़ी कोठियों में गेहूं जमा किया जाता है और शक्तिशाली पम्पों से एक मिनट में लगभग ढाई टन गेहूं ऊपर खींच लिया जाता है। यह जमा किया हुआ गेहूं भी ज्यों का त्यों काम में नहीं लिया जाता बल्कि बड़ी आटा मिल में एक टॉवरनुमा ढांचे में लगी अनेक मोटी और महीन छलनियों से गुजरता है। इस प्रक्रिया से गेहूं के कंकड़ और तिनके आदि साफ हो जाते हैं। अब गेहूं धुलाई कक्ष से गुजरता हुआ गरम हवा में सूखने के लिए कुछ देर रुकता है। सूखने पर निर्धारित माप के बेलनों से इसको मोटा-मोटा दला जाता है। इसके बाद बारीक बेलनों से इसकी पिसाई होती है।

उस महीन आटे को भी पांच-छ मोटी, बारीक छलनियों से गुजरना पडता है। इन छलनियों में ताकतवर चुम्बक लगे रहते हैं, ताकि आटे में पडी लोहे की अशुध्दियों को खींच सकें। अब यह शोधित आटा मैदा बनकर बाजार में आ जाता है। बस, इसी मैदे से बनती हैं - डबल रोटियां। सर्वप्रथम एक बडे बर्तन में यंत्र द्वारा मैदा डाला जाता है। उसमें साफ पानी और निर्धारित मात्रा में चीनी एवं खमीर युक्त घोल मिलाकर गूंधा जाता है।

गुंधाई के बाद आटे को धातु की सतह वाली लंबी मेज पर रखकर एक महीन कपड़े से ढंक दिया जाता है। इस बीच खमीर के कारण आटे में खट्टापन आ जाता है और उसका जायका भी कुछ अलग हो जाता है। साथ में कार्बन डाई ऑक्साइड गैस बनती है, जो समूचे आटे को फुलाकर स्पंज की तरह हल्का कर देती है। जब भट्ठी में डबल रोटी सिंकती है तो ताप के कारण गैस रोटी को छलनी करती हुई उड़ जाती है। यह विशेषता सिर्फ गेहूं के आटे में ही होती है। अब यह गुंधा हुआ मैदा यंत्रों से कांटे पर तुलता है और निर्धारित माप की लोइयों में बंट जाता है। ये लोइयां मशीन द्वारा डबलरोटी के आकार की बनाई जाती हैं। नीचे धातु का एक पात्र रहता है, जिसमें से डबल रोटी गिरती जाती है। इन पात्रों को 450 डिग्री फारेनहाइट से 500 डिग्री फारेनाइट तक के तापमान वाली भट्ठी में रख दिया जाता है। लगभग 40-50 मिनट बाद डबलरोटी तैयार हो जाती है। इस तैयार डबलरोटी को काटने के लिए बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। अगर ज्यादा गरम अवस्था में इसे पैक कर दिया जाए तो ठंडी पडने पर इसके सील जाने की आशंका रहती है और फफूंद उठ सकती है। इसलिए इसे प्राय: 90 डिग्री फारेनहाइट से 95 डिग्री फारेनहाइट के तापमान पर ही पैक किया जाता है।
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बाहरी कडि़यां
के कारण आटे में खट्टापन आ जाता है और उसका जायका भी कुछ अलग हो जाता है। साथ में कार्बन डाई ऑक्साइड गैस बनती है, जो समूचे आटे को फुलाकर स्पंज की तरह हल्का कर देती है। जब भट्ठी में डबल रोटी सिंकती है तो ताप के कारण गैस रोटी को छलनी करती हुई उड़ जाती है। यह विशेषता सिर्फ गेहूं के आटे में ही होती है। अब यह गुंधा हुआ मैदा यंत्रों से कांटे पर तुलता है और निर्धारित माप की लोइयों में बंट जाता है। ये लोइयां मशीन द्वारा डबलरोटी के आकार की बनाई जाती हैं। नीचे धातु का एक पात्र रहता है, जिसमें से डबल रोटी गिरती जाती है। इन पात्रों को 450 डिग्री फारेनहाइट से 500 डिग्री फारेनाइट तक के तापमान वाली भट्ठी में रख दिया जाता है। लगभग 40-50 मिनट बाद डबलरोटी तैयार हो जाती है। इस तैयार डबलरोटी को काटने के लिए बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। अगर ज्यादा गरम अवस्था में इसे पैक कर दिया जाए तो ठंडी पडने पर इसके सील जाने की आशंका रहती है और फफूंद उठ सकती है। इसलिए इसे प्राय: 90 डिग्री फारेनहाइट से 95 डिग्री फारेनहाइट के तापमान पर ही पैक किया जाता है।
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вот это на теги

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  #1815 (ПС)
tu es fou!
aller à la verge

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  #1816 (ПС)
Пошёл я короче Windows 7 ставить

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  #1817 (ПС)
-Цитата от Yurnero Посмотреть сообщение
Пошёл я короче Windows 7 ставить

она гораздо охуеннее убогой хр например

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Six City
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  #1818 (ПС)
-Цитата от Jane Lane Посмотреть сообщение
tu es fou!
aller à la verge
üölöppükeqekpa öpöölplöa

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  #1819 (ПС)
-Цитата от Jane Lane Посмотреть сообщение
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Пошёл я короче Windows 7 ставить

она гораздо охуеннее убогой хр например
еее
хрюша уже порядком подзаебал
и не красивый он нихуя..

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№ 1
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  #1820 (ПС)
言語学を日本語で学んでみませんか

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  #1821 (ПС)
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Пошёл я короче Windows 7 ставить

она гораздо охуеннее убогой хр например
еее
хрюша уже порядком подзаебал
и не красивый он нихуя..
гламур это хасол
-Цитата от Расул Посмотреть сообщение
-Цитата от Jane Lane Посмотреть сообщение
tu es fou!
aller à la verge
üölöppükeqekpa öpöölplöa
tu me menaces?
hein?

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  #1822 (ПС)
-
здесь нет арми
Здесь есть Я, йоптэ

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  #1823 (ПС)
ты видишь, я тебя раздеваю своим взглядом
СУКА! ШЕВЕЛИ ЗАДОМ!
и пусть я страшнее чем восставший из ада
СУКА! ШЕВЕЛИ ЗАДОМ!
ты видишь, я тебя раздеваю своим взглядом
СУКА! ШЕВЕЛИ ЗАДОМ!
и пусть мой костюм дешевле, чем твоя помада
СУКА! ШЕВЕЛИ ЗАДОМ!

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  #1824 (ПС)
Ну ка скажите че последнее послушали или щас слушаете?

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  #1825 (ПС)
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Ну ка скажите че последнее послушали или щас слушаете?
карандаш - шевели задом

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